सब छोड़ जा रही -
तेरे लिए सब छोड़ जा रही
गीत गाता पेड़,
तितलियाँ, मेरा बालपन,
स्कूल के दिन, गाँव के मेले,
दशहरे की पूजा, सावन के झूले,
अगहन के वीरवार का व्रत,
सब कुछ सिर्फ़ तेरे लिए ।
बीच रास्ते में तुझे ठोकर ना लगे
देख कैसे चारों ओर
सौभाग्य का सेतु बना रखा है
तेरे रास्ते में।
अपना सारा अहंकार, स्वाभिमान
सब तुझे दे जाऊँगी
मुझे पता है यही स्वाभिमान
तुझे पहुँचायेगा तेरे ठिकाने पर
इन्द्रपद हो ना हो
यही स्वाभिमान मेरी मूल सम्पत्ति है।
तेरे पुरखों की सैकड़ों सम्पत्ति
कामिनी फूलों से भरा तालाब
साफ़ पानी
देख, तेरे लिए सब छोड़ जा रही ।
सच में तू गंगा को बुला लायेगी
तपस्या से, तितिक्षा में भगीरथ की तरह ।
देख समय भी क़रीब आ चुका है।
तू मेरी प्यारी-सी बिटिया
घने बरगद के पेड़ तले प्रेतात्माओं का खेल
ढोंगी इन्सानों के मन में भरे हुए
विष को परखना
डरना नहीं।
तेरे लिए छोड़ जा रही जो कवच
उसी से डगमगायेगा प्रतिहिंसा का सिंहासन ।
इन्द्र नीलमणि माणिक्य का जितना अहंकार
उसकी तुझे ज़रूरत नहीं
तपस्या तपस्या में एक दिन तू पहुँचेगी शिखर पर।
मेरे त्याग एवं तितिक्षा की सीढ़ी चढ़कर
तू पहुँचेगी शीर्ष पर।
उस सीढ़ी पर समर्पित
प्राण के रक्त के छींटे
सपनों का उच्चारण सब मिला हुआ है।
मैंने भोगा है स्वप्नभंग विमर्शता
गहरी साँसें, सैकड़ों विफलताएँ
सब याद रखना
तेरे लिए सँजोये रखे हैं
अपनी कविता के अन्तिम कुछ पद ।
पूजा कमरे में छोड़े जा रही
महाप्रभु की गद्दी के पास
एकादश स्कन्ध भागवत
मैं जानती हूँ एक ना एक दिन
तू ढूँढ़ेगी अपना सुगन्धित बचपन
उसी पूजा के कमरे में।
उस दिन मैं न रहूँ तो भी
मेरी कविता होगी
स्मृति सारी शिलालेख
हो चुकी होगी।
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