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सत्रह कहानियाँ :दर्द और दीवानगी के कुछ लम्हे ऐसे होते हैं, जिन्हें ज़िन्दगी का किरदार झेल नहीं पाता, लेकिन कहानी का विस्तार उसे झेल लेता है....कई बार कोई आवाज़, एक कम्पन से बढ़कर कुछ नहीं कह पाती, उस बेगाना दर्द को लफ़्ज़ों में ढालना है, तो कहानीकार का भी बहुत कुछ पिघलकर, उसके साथ ढलने लगता है....कहानी हर बार किसी नये कोण से दस्तक देती है... कई बार एक टूटी-सी चीख़ की तरह....बहुत पहले ऐसे ही कुछ एहसास भोजपत्रों को मिले होंगे और उससे भी पहले पत्थरों, शिलाओं ने कुछ लकीरों में सँभाल लिये होंगे फिर भी तब से लेकर आज तक जाने कितनी कहानियाँ बहती हुई हवा के बदन पर लिखी जाती हैं, जो वक़्त से बेगाना हो जाती हैं....ये थोड़े से हरफ़ जो साँसों से निकलकर दामन पर गिर गये, बस वही तो हैं....- अमृता प्रीतम
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