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हड़ताली मोड़ -
ग्रामीण जीवन के कथाशिल्पी रामधारी सिंह दिवाकर के कहानी-संग्रह 'हड़ताली मोड़' की कहानियाँ गाँव के बदलते यथार्थ के विविध पक्षों को गहन संवेदना के साथ उकेरती हैं। बदलाव की दृश्य-अदृश्य प्रक्रिया से गुज़र रहे गाँव जिस रूप-रंग में दिवाकर जी की कहानियों में रूपायित हुए हैं, अन्यत्र देखने को नहीं मिलते। समाज के हाशिये पर रह रहे दबे-कुचले लोग लोकतान्त्रिक अधिकार की आबो-हवा में, स्वाभिमान से सिर उठाकर सामन्ती व्यवस्था को चुनौती देने लगे हैं। दलित चेतना का उभार नये सामाजिक परिप्रेक्ष्य के भवितव्य का संकेत देता है। बेशक, इसके अपने अन्तर्विरोध भी हैं जिनसे बच निकलने का अस्मितावादी प्रयास लेखक ने नहीं किया है।
स्त्री-विमर्श के बौद्धिक वाग्विलास को अँगूठा दिखाती 'रंडियाँ' जैसी कहानी भी इस संग्रह में है। गाँव की आधारभूत भावात्मक संरचना के टूटने की पीड़ा का समकालीन लोकतान्त्रिक परिवेश में विस्थापन आश्वस्त करता है कि कुछ बेहतर होगा।
गाँव की 'बोली-बानी' में पगी दिवाकर जी की कथा-भाषा में ग़ज़ब का प्रवाह और पठनीयता है।
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