Bhitarghaat

Jayanandan Author
Hardbound
Hindi
9788126351010
2nd
2015
160
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₹112.00 ₹160.00
30% Off

भितरघात - जयनंदन अधुनातन पीढ़ी के ऐसे कहानीकार हैं जिन्होंने निरन्तरता में सशक्त और यादगार कहानियाँ लिखी है। इनकी कहानियाँ आधुनिकता के नाम पर पसर रही नव संस्कृति व अपसंस्कृति के ख़िलाफ़ एक बहुत सधी लड़ाई लड़ती है।—पुष्पपाल सिंह जयनंदन की कहानियों में सच इतना ताक़तवर है कि शिल्पगत प्रयोग की ज़रूरत नहीं रह जाती। कथात्मक विवरण क़िस्सागोई का भरपूर आभास देते हैं। कहानियों में कथा प्रवाह अविच्छिन्न है। समय के अन्तर्विरोधों से कथात्मक मुठभेड़ के इरादे छिपे नहीं रहते। कथाकार की मूल निष्ठा किसी-न-किसी चरित्र के सहारे यथार्थ से टकराती है, फिर टूट-बिखर जाती है। लेकिन टकराव की प्रक्रिया में व्यक्ति विवेक-आहत और उद्विग्न होकर भी प्रखर बना रहता है। इनकी कहानियों में वर्णित समय और समाज ठीक वही है जिसमें हम रह रहे हैं। यानी स्वतन्त्र भारत का मूल्यवंचना की गिरफ़्त में उत्तर आधुनिक समाज जो जातिवादी, सम्प्रदायवादी भ्रष्ट राजनेताओं की आखेट-स्थली बन गया है। कहानी पढ़ते हुए हम आजू-बाजू ही नहीं, अपने अन्दर भी झाँकने को विवश होते हैं।—रेवती रमण जयनंदन ने सार्थक लेखन के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है। जयनंदन ज़्यादा लिखने वाले लेखकों में से हैं। लेकिन यह उनका महत्त्वपूर्ण पक्ष है कि ज़्यादा लिखते हुए भी उन्होंने ज़्यादा अच्छा लिखा है। यथार्थवादी शैली में उनकी विश्वसनीय क़िस्सागोई कहानियों को एक मर्मस्पर्शी आयाम दे जाती है। —अरुण शीतांश 'नास्तिक, मन्दिर और मटन की दुकान' कहानी में जयनंदन समाज में प्रचलित जातीय समीकरणों के संवेदनशील कोणों को उद्घाटित करते हैं। परशुराम पाण्डे के रूप में उन्होंने एक ऐसे सवर्ण चरित्र को उभारने का प्रयास किया है जो ब्रह्म सिद्धान्तों का धुर विरोधी होने के बावजूद बार-बार जाति के संजाल में फँसता जाता है। —मुकेश नौटियाल

जयनन्दन (Jayanandan)

जयनंदन - जन्म: 26 फ़रवरी, 1956, नवादा (बिहार) के मिलकी गाँव में। शिक्षा: एम.ए. हिन्दी। अब तक कुल सत्रह पुस्तकें प्रकाशित। 'श्रम एव जयते', 'ऐसी नगरिया में केहि विधि रहना', 'सल्तनत को सुनो गाँववालो' (सभी उपन

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