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कुछ न कुछ छूट जाता है एक पावरफुल स्टोरी है। इसके पात्रों में अपने भीतर प्रवेश करने की विलक्षण क्षमता है। ऋतु की खोज (quest) उसका जीवन है, हिस्सा नहीं। दूसरे पात्र उसकी इस खोज (quest) को जगाने का काम करते हैं । वे सामने वाले दरवाज़े से आते हैं, अपनी भूमिका अदाकर पिछले दरवाज़े से निकल जाते हैं, किसी और के लिये जगह खाली कर... । इसमें ऋतु की खुद को खँगालने की सामर्थ्य गजब की है। Only we need an eye (vision) and capability to lay our finger on the answers hidden, somewhere, in the multiple layers of questions. ये सवाल इकहरे या flat कतई नहीं हैं, जैसा कि ऊपर के भासित होते होंगे ।
क्या हम सचमुच एक-दूसरे के क़रीब होते हैं? क्या क़रीब रहना हमारी विवशता है? क्योंकि हम एक-दूसरे के बिना अपने-अपने निचाट के सम्मुख आ खड़े होते हैं । यह निचाट उस जीवन के बिल्कुल विपरीत है, जिसे हम जी रहे होते हैं और जो छोटे-छोटे नामहीन सुखों-दुखों, ख़तरों का एक टीला है। इस टीले पर खड़े होकर हम उस निचाट को अपनी लघुता से पछाड़ने की बेदम कोशिश करते रहते हैं ।
Perhaps we cannot belong to each other until and unless we learn to belong to our-solitude. Things which are beyond thought should not be subjected to argument. KABIR tells us - he understands who loves, For love is beauty which is joy, a beauty which is truth, The truth of love is the truth of the universe: it is the lamp of the soul that reveals the secrets of darkness.
Keshav (Shimla)
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